oceanography

अटलांटिक महासागर के नितल उच्चावच

अटलांटिक महासागर के नितल उच्चावच – पाश्चम में उत्तरी तथा दाक्षिणी अमेरिकाऔर पूर्व में यूरोप तथा अफ्रीका के मध्य स्थित अटलांटिक महासागर 820 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है, जो कि समस्त विश्व के क्षेत्रफल का 1/6 भाग तथा प्रशान्त महासागर के क्षेत्रफल का 1/2 भाग है। इसका आकार ‘S’ अक्षर के समान है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ में उ. तथा द. अमेरिका, यूरोप तथा अफ्रीका से मिले थे। बाद में महाद्वीपीय प्रवाह के कारण उ. तथा द. अमेरिका अलग होकर पश्चिम दिशा में प्रवाहित हो गये, जिस कारण आन्ध्र महासागर का निर्माण हुआ। आन्ध्र महासागर दक्षिण में सर्वाधिक चौड़ा है। 35° द. अक्षांश पर इसकी पू.-प. चौड़ाई 5920 किमी. है। भूमध्य रेखा की ओर यह निरन्तर संकरा होता जाता है। साओराक अन्तरीप तथा लाइबेरिया तट के बीच चौड़ाई 2560 किमी है। उत्तर की ओर चौड़ाई पुनः बढ़ती जाती है। 40° उत्तरी आक्षांश पर यह चौड़ाई 4800 किमी हो जाती है। सुदूर उत्तर में यह पुनः संकरा हो जाता है जहाँ पर नार्वेजियन सागर, डेनमार्क जलडमरूमध्य तथा डेविस की खाड़ी द्वारा इसका सम्बन्ध आर्कटिक सागर से हो जाता है। सीमान्त सागरों तथा विस्तृत महाद्वीपीय मग्नतट के कारण आन्ध्र महासागर के समस्त क्षेत्रफल का 24% भाग 4800 मीटर से कम गहरा है। आन्ध्र महासागर के नितल में निम्न चार प्रमुख रूप देखने को मिलते हैं।

1. महाद्वीपीय मग्नतट

मग्नतट अटलांटिक महासागर के दोनों तटों पर पर्याप्त विस्तृत हैं। कहीं पर इनकी चौड़ाई 80 किमी से अधिक हो जाती है तो कहीं पर यह 2 से 4 किमी ही रह जाती है। वास्तव में मग्न तट की चौड़ाई समीपी तट के उच्चावच्च पर आधारित होती है। जहाँ कहीं भी तट के पास पर्वत की स्थिति देखने को मिलती है, वहाँ पर मग्नतट संकुचित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, बिस्के की खाड़ी से उत्तमाशा अन्तरीप के बीच अफ्रीका का मग्नतट तथा 50 द. से 100 द. अक्षांश के बीच ब्राजील का मग्नतट संकरा हो गया है। इसके विपरीत उ. अमेरिका के उ. पू. भाग तथा उ. प. यूरोप के मग्नतट 240 से 400 किमी तक चौड़े हैं। न्यूफाउण्डलैण्ड (ग्राण्ड बैंक) तथा ब्रिटिश द्वीप (दाशर बैंक) के चारों ओर विस्तृत मग्नतट पाये जाते हैं। ग्रीनलैण्ड तथा आइसलैण्ड के मग्नतट भी चौड़े हैं। आन्ध्र महासागर में बाहियाब्लैका तथा अण्टार्कटिक के बीच चौड़े मग्नतट पाये जाते हैं। आन्ध्र महासागर के मग्नतटों पर कई सीमान्त सागर (marginal seas) तथा असंख्य द्वीप पाये जाते हैं। मग्नतट स्थित सीमान्त सागरों में हडसन की खाड़ी, बाल्टिक सागर, उत्तरी सागर, डेविस जलडमरूमध्य, डेनमार्क जलडमरूमध्य आदि प्रमुख हैं। आन्ध्र महासागर के आन्तरिक सागरों में कैरेबियन सागर तथा रूम सागर प्रमुख हैं।

3. मध्य अटलांटिक कटक (Mid-Atlantic Ridge)

अटलांटिक महासागर के नितल के उच्चावच से सम्बन्धित सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यहाँ का ‘मध्य सागरीय कटक’ है। सबसे पहले इसकी खोज सन् 1873 में चैलेंज (Challenger) द्वारा की गई थी। सन् 1925-27 मीटियॉर (Meteor) द्वारा निरंतर ध्वनिकरण(Echosounding) की सहायता से इसका मानचित्र तैयार किया गया। सन् 1953 में संयुक्त राज्य अमेरिका के वीमा (Vema)नामक जहाज की सहायता से इसका विस्तृत अध्ययन किया गया। अंध महासागर की भाँति यह कटक भी ‘S’ आकार का है। यह उत्तरमें आइसलैंड से दक्षिण में बोवेट द्वीप (Bouvet Island) तकलगभग 14,500 कि.मी. लम्बा है। यह अंध महासागर को दो विस्तृतद्रोणियों में बाँटता है। यह कटक आइसलैंड से शुरू होकर दक्षिण की ओर बढ़ता है और रेकजानास कटक के नाम से पुकारा जाता है। आइसलैंड तथा स्कॉटलैंड के बीच यह वाइविले थॉम्सन कटक (Wyville Thomson Ridge) के नाम से जाना जाता है और अंध महासागर तथा आर्कटिक महासागर के बीच सीमा का काम करता है। इस भाग में समुद्र की गहराई 1100 मीटर है। ग्रीनलैंड तथा आइसलैंड के दक्षिण में लगभग 55° उत्तरीअक्षांश के निकट यह कटक चौड़ा हो जाता है। यहाँ यह टेलीग्राफिक पठार (Telegraphic Plateau) के नाम से विख्यात है क्योंकि समुद्र में टेलीग्राफ की तारें (Cables) सबसे पहले यहीं पर डालीगई थीं। लगभग 40° उत्तरी अक्षांश के निकट न्यूफाउंडलैंड कीओर 3000 से 5000 मीटर की गहराई पर एक अन्य कटक इसमें से निकलता है जिसे न्यूफाउंडलैंड उभार कहते हैं। 40° उत्तरी अक्षांश बगर तथा के दक्षिण में यह कटक अपेक्षाकृत चौड़ा हो जाता है और यहाँ पर मध्य कटक से एजोर्स कटक अलग होता है। एजोर्स द्वीप इसी परस्थित है। दक्षिण की ओर यह केन्द्रीय कटक संकरा हो जाता है।

भूमध्य रेखा के निकट 4152 फैदम गहरा रोमांश गर्त इसे दो भागों में बाँटता है। इसके उत्तरी भाग को डॉल्फिनमें अन श्रेणी (Dolphin Rise) तथा दक्षिणी भाग को चैलेंजर श्रेणी उपस्थित (Challenger Rise) कहते हैं 10° दक्षिणी अक्षांश के निकटस्थान अक्षांश के निकट वेल्विस श्रेणी (Walvis Ridge) इससे अलग स्थापन वेगनर मेंप व दक्षिणी ओगर का एक हजार  चार प्रमुख उत्तरी होकर अफ्रीका की ओर बढ़ती है और अफ्रीका के महाद्वीपीय मग्नतटमें विलिन हो जाती है। 40° दक्षिणी अक्षांश के बाद यह मध्य कटक दक्षिण-पूर्वी दिशा में आगे बढ़ता है और 45° दक्षिणी अक्षांश के निकट मीटियॉर बैंक (Meteor Bank) तथा स्वेल अंतरीप (Capeswell) का निर्माण करता है। आशा अंतरीप (Cape of GoodHope) के दक्षिण में यह अटलांटिक अंटार्कटिक कटक (At-lantic-Antarctic Ridge) के नाम से विख्यात है। मध्यवर्ती कटक का यद्यपि अधिकांश भाग जुलुमज्जित है तथापि कई चोटियाँ सागर को चीर करके ऊपर दृष्टिगत होती हैं। अजोर्स का पिको द्वीप सर्वोच्च है, जो सागर तल से 7000 से 8000 फीट ऊपर उठा है। मध्य अटलांटिक कटक की उत्पत्ति के विषय में पर्याप्त मतभेद है, परन्तु महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त, (वेगनर टेलर) के अनुसार इस कटक की उत्पत्ति तनाव के कारण तथा उ० एवं दक्षिण अमेरिका के पश्चिम दिशा में प्रवाह के कारण मानी जानी चाहिए।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के आधार पर इसका निर्माण हेस उत्तरी अमेरिका एवं दक्षिण अमेरिका तथा यूरोप-अफ्रीका प्लेट के रचनात्मक किनारे (constructive plate margins) के अलगाव तथा नीचे से मैगमा के ऊपर की ओर उद्वेलित होकर आगमन के कारण हुआ है।

4. द्रोणी (Basins)

मध्यवर्ती अटलाण्टिक कटक द्वारा आन्ध्र महासागर दो विस्तृत द्रोणियों में विभाजित हो जाता है। इन दो बृहद द्रोणियों में पुनः कई छोटी-छोटी द्रोणियाँ भी पयी जाती हैं,

जिनमें निम्न प्रमुख हैं:

(1) लेब्राडोर द्रोणी: उ. में ग्रीनलैण्ड के जलमग्न तट तथा द. में न्यूफाउण्डलैण्ड उभार के बीच 4000 मीटर की गहराई तक 400 से 50° उ. अक्षांशों के बीच फैली है।

(2) उत्तरी अमेरिका द्रोणी उत्तरी आन्ध्र महासागर की सबसे बड़ी द्रोणी है, जिसका विस्तार 120 से 40° उ. अक्षांशों के मध्य उत्तरी अमेरिका के तट से 550 प. देशान्तर के बीच 5000 मीटर की गहराई तक पाया जाता है।

(3) ब्राजील द्रोणी : द. अटलाण्टिक महासागर में भूमध्य रेखा से 30° द. अक्षांश तथा द. अमेरिका के तट तथा पारा उभार के मध्य स्थित है।

(4) स्पेनिश द्रोणीः मध्य अटलांटिक कटक के पूर्व में आइबेरियन प्रायद्वीप के पास स्थित स्पेनिश द्रोणी का विस्तार 300 से 50° उ. आक्षांशों के बीच 5000 मीटर की गहराई तक है।

(5) उ. तथा द. कनारी बेसिन दो वृत्ताकार द्रोणियों से मिलकर बनी है, जिसका विभाजन उच्च भाग द्वारा होता है।

(6) केपवर्ड द्रोणी : मध्य अटलाण्टिक कटक तथा अफ्रीका के मध्य 100 से 23.5° उत्तरी आक्षांशों के बीच 5000 मीटर की गहराई तक विस्तृत है।

अटलांटिक महासागर गर्त में 19 गर्त हैं जिनकी गहराई 3000 फैदम (5500 मीटर) से अधिक है। 7000 मीटर से अधिक गहरे गर्त केवल 2 हैं। इस महासागर की सबसे गहरे गर्त प्यूरिटो रिको गर्त (Puerto Rico Deep) है जो 5050 फैदम गहरा है। यह प्यूरिटो रिको द्वीप के ठीक उत्तर में स्थित है। दूसरा दक्षिणी सैंडविच गर्त (South Sandwich Deep) है जो इसी नाम के द्वीप के पूर्व की ओर स्थित है। इसकी गहराई 4552 फैदम आँकी गई है। रोमांश गर्त (4152 फैदम) मध्य कटक को भूमध्य रेखा के पास दो भागों में बाँटता है। इसके अतिरिक्त केमन गर्त, नरेस गर्त (Nares Deep), मोसले गर्त तथा कुचानन गर्त भी इस महासागर में विद्यमान हैं।

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