ज्वालामुखी (Volcanoes) या ज्वालामुखी के प्रकार – ज्वालामुखी के प्रकार उद्भदन के प्रकार के आधार पर ज्वालामुखी को मुख्य रूप से पाँच प्रकारों में विभक्त किया गया है। ये हैं-1. हवाई तुल्य, 2. स्ट्राम्बोली तुल्य, 3. विसूवियस, 4. पीलियन, 5. वलकेनियन तुल्य उभेदन (ज्वालामुखी के प्रकार)। में हम ज्वालामुखी पृथ्वी के अन्तर्जात बलों (Endogenetiction) से उत्पन्न भू-संचलन की एक आकस्मिक घटना है। ज्वालामुखी प्रायः एक गोल या कुछ गोल आकार का छिद्र अथवा खुला भाग होता है, जिससे होकर पृथ्वी के अत्यंत तप्त भूगर्भ से गैस, तरल लावा, जल एवं चट्टानों के टुकड़ों से युक्त गर्म पदार्थ पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होते हैं। ज्वालामुखी द्वारा पिघले हुए पदार्थों के बाहर फेंकने की क्रिया को ‘उद्गार’ (Eruption) कहते हैं।
जब पिघली हुई चट्टानें धरातल को तोड़कर बाहर निकलती हैं, तो प्रायः बहुत जोरों का विस्फोट होता है और अक्सर इसके पहले भूकम्प होने लगता है। विस्फोट के स्थान पर धरातल की ठोस चट्टानें टूट-फूट कर हवा में काफी ऊँचाई तक फिंक जाती हैं। जलवाष्प तथा अन्य गैसों के विशाल बादल निकलते हैं, वायुमंडल राख, धुआँ तथा बादलों से भर जाता है और तब फिर अति उष्ण पिघला हुआ लावा बाहर निकलता है। होम्स (Holmes, 1978) के शब्दों में ज्वालामुखी, वास्तविकता में एक दरार अथवा निकास (vent) होता है, जिसका संबंध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, जिससे लावा बहकर बाहर निकलता है। गैसों का प्रस्फोटी फटना, उद्दीप्त छिड़काव का फव्वारा और ज्वालामुखीय राख धरातल पर उभेदित होती है।
ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण – ज्वालामुखी उभेदन का ‘सागर तल प्रसरण’ (sea-floor spreading), प्लेट विवर्तनिक तथा पर्वत- निर्माण प्रक्रियाओं से सीधा संबंध है। ज्वालामुखी-तंत्र का प्रकार प्लेट विवर्तनिक से संबंध रखता है। अपसारी प्लेट की सीमाओं पर ‘दुर्बलता मंडल’ (Asthenosphere) के भाग के पिघलने से बेसाल्टिक मैग्मा (Magma) उत्पन्न होता है। यह ‘विदर’ (Fissure) के सहारे बाहर निकलता है। ज्वालामुखी उद्भव क्रियाओं के कारणों को अग्रांकित प्रकारों में रखा जा सकता हैl
1. हम जानते हैं कि पृथ्वी के धरातल के नीचे जाने पर प्रत्येक 64 फीट की गहराई पर गर्मी 1°F या प्रति 32 मीटर पर 1°C बढ़ती जाती है। तापक्रम में इस वृद्धि का मुख्य कारण, पृथ्वी की गहराई में रेडियोधर्मी तत्वों का विघटन होना है।
2. पृथ्वी के भीतरी भाग में प्लेटों के अलग होने और उनके विपरीत दिशाओं में गतिशील होने के कारण, गलन बिन्दु (Melting Point) के नीचे होने के कारण लावा की उत्पत्ति होना।
3. वर्षा जल और हिम के पिघलने से बने जल के परिश्रवण (percolation) से भूमि के नीचे पहुँचने के कारण गैस और भाप की उत्पत्ति का होना।
4. ज्वालामुखी उद्भेदन इस कारण भी होता है क्योंकि गैस और जलवाष्प की अत्यधिक मात्रा द्वारा लावा का बलकृत ऊपर की ओर चढ़ता है।
5. पृथ्वी की प्रमुख और छोटे प्लेटों के खंडित और संचलन के कारण भी ज्वालामुखी उभेदन होता है।
ज्वालामुखी से निस्सृत पदार्थ – ज्वालामुखी का प्रथम उद्गार प्रायः छिद्र के सहारे होता है। उद्गार से अनेक प्रकार के पदार्थ निकलते हैं। इनको तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। प्रथम गैस तथा जलवाष्प, द्वितीय विखण्डित पदार्थ (fragmental materials) तथा तृतीय, लावा पदार्थ। सर्वप्रथम जब ज्वालामुखी का उद्भन होता है तो गैसें बड़े जोरों के साथ भूपटल को तोड़ करके धरातल पर प्रकट होती हैं। इन गैसों में सर्वाधिक प्रतिशत वाष्प का होता है। सम्पूर्ण ज्वालामुखी गैस का 60 से 90 प्रतिशत भाग इसी वाष्प द्वारा पूरा किया जाता है। वाष्प (steam) के अलावा कार्बनडाइआक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर डाइआक्साइड आदि का महत्वपूर्ण योग रहता है।
उद्भेदन के प्रकार Types of Eruption – उद्भदन के प्रकार के आधार पर ज्वालामुखी को मुख्यरूपेण पाँच प्रकारों में विभक्त किया गया है। ये हैं-1. हवाई तुल्य, 2. स्ट्राम्बोली तुल्य, 3. विसूवियस, 4. पीलियन, 5. वलकेनियन तुल्य उभेदन।
1. हवाई तुल्य उभेदन (Hawaian Eruption)
इसमें उद्भदन बिना किसी विस्फोट के शान्तिपूर्वक होता है। इसमें लावा पतला एवं तरल होता है जो विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है। लावा बिन्दुओं से निर्मित लाल धागों के रूप में पतले लावा पिण्डों को वायु उड़ा ले जाती है और वहाँ के निवासी इसे ‘पीली देवी के सिर के बालों’ की उपमा देते हैं। इन ज्वालामुखियों में गैस कम मात्रा में शनैः शनैः निकलती है। हवाई द्वीप के प्रमुख ज्वालामुखी मोनालोआ और कलुआ से लावा की फुहार निकलती है, अतः इन्हें हवाई प्रकार के ज्वालामुखी कहते हैं।
2. स्ट्रॉम्बोली तुल्य उद्भेदन (Strombolian Eruption)
इस ज्वालामुखी में उद्भेदन समय-समय पर होता रहता है। इसमें लावा कम तरल होता है और लावा के कण हवा में उड़कर बम तथा विखंडित पदार्थ बन जाते हैं। भूमध्य सागर में सिसली द्वीप के उत्तर में स्थित लिपारी द्वीप के स्ट्रॉम्बोली ज्वालामुखी उद्भेदन से निरंतर लावा और गैस निकलते रहने के कारण इसे भूमध्य सागर का ‘प्रकाश-गृह’ कहते हैं।
3. विसुवियस तुल्य
उभेदन इनका उद्गार भयानकविस्फोट के साथ होता है। इसमें लावा के साथ गैसों का सम्मिश्रण अधिक होता है और आकृति गोभी के फूल के समान हो जाती है। विसूवियस उद्गार का प्रमुख उदाहरण माउण्ट सोमा का ज्वालामुखी है। इसमें अतिविस्फोटीय उद्भेदनों को ‘पिलियन’ तुल्य उद्भेदन भी कहते हैं।
4. पीलियन तुल्य उद्भेदन (Plean Eruption)
पिलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाश करी होते है विश्व में सर्वाधिक शक्तिशाली विस्फोट ऐसे ही ज्वालामुखीय उद्गार से होता है। मैग्मा अति गाढ़ा और बड़ा लस्सेदार होता है जो डाट के रूप में जम जाता है। मैग्मा बड़े दाब से ऊपर उठता है तो इस डाट को बड़े भयंकर ढंग से फोड़ देता है। 1902 में सेन्ट पियरे नामक नगर ऐसे ही विस्फोट से बर्बाद हो गया था। पश्चिमी द्वीप में माउण्ट पीली और फिलीपाइंस के हिबक-हिबक ऐसे ही ज्वालामुखी हैं।
5. वॅल्केनियन तुल्य उद्भेदन (Vulcanian Eruption)
इस प्रकार के उद्गार में बहुत लस्सेदार लावा बाहर निकलता है और उद्भेदनों के मध्य लावा के थक्के (clots) बन जाते हैं। इस प्रकार के उद्भेदन में शैल पिण्डों की ढेरी बाहर फेंकी जाती है। गैसें भी बाहर निकलती हैं, परन्तु स्ट्रॉम्बोली जैसी प्रकाशपुंज प्रज्वलित नहीं होता। ये भी गोभी के फूल जैसी आकृति ग्रहण करते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcanoes)
आवर्तन (periodicity) के आधार पर ज्वालामुखी को निम्नांकित तीन वर्गों में रखा जाता है। ये हैं
उद्गार की अवधि के अनुसार बर्गीकरण – ज्वालामुखी चाहे केन्द्रीय उद्गार वाले हों या दरारी उद्गार वाले, सब समान रूप से कार्यरत नहीं होते हैं। कुछ ज्वालामुखी उद्गार के शीघ्र बाद ही समाप्त हो जाते हैं तथा कुछ ज्वालामुखी कुछ अवकाश के बाद प्रकट होते रहते हैं। इस प्रकार उद्गार के समय तथा दो उद्गारों के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-
(i) जाग्रत ज्वालामुखी (active volcano) – जिन ज्वालामुखियों से लावा, गैस तथा विखण्डित पदार्थ सदैव निकला करते हैं, उन्हें ‘जाग्रत या सक्रिय ज्वालामुखी’ कहते हैं। वर्तमान समय में विश्व के जाग्रत ज्वालामुखियों की संख्या 500 के लगभग बतायी जाती है। इनमें प्रमुख हैं, इटली के एटना तथा स्ट्राम्बोली। स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में ‘लिपारी द्वीप’ पर स्थित है। इससे सदैव प्रज्जवलित गैसें निकला करती हैं, जिससे आस-पास का भाग प्रकाशमान रहता है, इसी कारण इस ज्वालामुखी को ‘भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ’ (light house) कहते हैं। जून, 1991 में फिलीपाइन में पिनाटुबो ज्वालामुखी का उद्भदन हुआ। तब से आज तक (1993) यह सक्रिय है।
(ii) प्रसुप्त ग्वालामुखी (dormant volcano) – कुछ ज्वालामुखी उद्गार के बाद शान्त पड़ जाते हैं तथा उनसे पुनः उद्गार के लक्षण नहीं दीखते हैं, पर अचानक उनसे विस्फोटक या शान्त उभेदन हो जाता है, जिससे अपार धन-जन की हानि उठानी पड़ती है। ऐसे ज्वालामुखी को, जिनके उद्गार के समय तथा स्वभाव के विषय में कुछ निश्चित नहीं होता है तथा जो वर्तमान समय में शान्त से नजर आते हैं, ‘प्रसुप्त ज्वालामुखी’ कहते हैं। जैसे नीद के समय आदमी किसी भी क्षण जाग सकता है, उसी प्रकार ऐसे ज्वालामुखी से किसी भी समय उद्गार हो सकता है। विसुवियस तथा क्राकाटाओ इस समय प्रसुप्त हैं। विसुवियस भूर्गार्भक इतिहास में कई बार जाग्रत तथा कई बार शांत हो चुका है। इसका प्रथम उद्गार 79 ई० में हुआ था जिससे पोम्पियाई तथा हरकुलेनियन नगरों को काफी क्षति उठानी पड़ी। इसके बाद लगभग 1500 वर्षों बाद विसुवियस का उद्भदन 1631 में हुआ। तत्पश्चात् विसुवियस के उद्गार 1803, 1872, 1906, 1927, 1928 तथा 1929 में हुए। वर्तमान समय में यह प्रसुप्त अवस्था में है।
(iii) शान्त ज्वालामुखी (extinct volcano) – जब ज्वालामुखी का उद्गार पूर्णतया समाप्त हो जाता है तथा उसके मुख में जल आदि भर जाता है एवं झीलों का निर्माण हो जाता है तो पुनः उसके उद्गार की सम्भावना नहीं रहती है। भूगर्भिक इतिहास के अनुसार इनमें बहुत लम्बे समय से पुनः उद्गार नही हुआ है। ऐसे ज्वालामुखी को शान्त ज्वालामुखी कहते हैं। कोह सुल्तान तथा देमवन्द ईरान के प्रमुख शान्त ज्वालामुखी हैं। इसी प्रकार वर्मा (मयमार) का पोपा भी प्रशान्त ज्वालामुखी का उदाहरण है।
वायुमंडल की संरचना