प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त (Plate Tectonic Theory) – स्थलीय दृढ़ भूखण्ड को प्लेट कहते हैं। इन प्लेटों के स्वभाव तथा प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं। प्लेट संकल्पना का प्रादुर्भाव दो तथ्यों के आधार पर हुआ है- (i) महाद्वीपीय प्रवाह की संकल्पना तथा (ii) सागर तली के प्रसार (sea floor spreading) की संकल्पना। स्थलमण्डल को आन्तरिक रूप से दृढ़ प्लेट का बना हुआ माना गया है अब तक 6 प्रमुख तथा 20 लघु प्लेट का निर्धारण किया गया है- 1. युरेशियन प्लेट, 2. इण्डियन प्लेट, 3. अफ्रीकी प्लेट, 4. अमेरिकी प्लेट, 5. पैसिफिक प्लेट, 6. अण्टार्कटिक प्लेट इनके अतिरिक्त कई अन्य प्लेटों का भी पता चला है।
ये लघु प्लेट बड़े प्लेट से स्वतंत्र होकर गतिशील हो सकते हैं। इन प्लेटों के किनारे ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि इन्हीं किनारों के सहारे ही भूकम्पीय, ज्वालामुखीय तथा विवर्तनिक (tectonic) घटनायें घटित होती हैं। अतः प्लेट के इन्हीं किनारों का अध्ययन महत्वपूर्ण है। सामान्य रूप में प्लेट के किनारों (margins) तथा सीमा को तीन प्रकारों में विभक्त किया गया है।
प्लेट सीमा (boundary) तथा किनारों (margins) में अन्तर स्थापित करना आवश्यक है। प्लेट के सीमान्त भाग को प्लेट किनारा कहते हैं जबकि दो प्लेट के मध्य संचलन मण्डल (motion zone) को प्लेट सीमा (boundary) कहते हैं।
i ) विनाशी प्लेट सीमा तथा किनारा – दो प्लेट आमने- सामने अभिसरित होते हैं। इन किनारों के सहारे पदार्थ निचली में मैण्टिल में क्षेपण (subduction) द्वारा व्ययित (consumed) होता है। अर्थात् इन किनारों पर प्लेट का पदार्थ नीचे चला जाता है और प्लेट के किनारों में ह्रास होता है। इस प्लेट सीमा को अभिसारी सीमा (convergent boundary) भी कहते हैं
ii) संरक्षी प्लेट सीमा तथा किनारा (conservative plate margins) – संरक्षी किनारों के सहारे दो प्लेट एक दूसरे के बगल से खिसकते हैं जिस कारण रूपान्तर भ्रंश (transform fault) का सृजन होता है तथा प्लेट के किनारों के धरातलीय क्षेत्र में अन्तर नहीं होता है। इस प्लेट सीमा को शीयर सीमा भी कहते हैं। इसे संरक्षी इसलिए कहते हैं कि इस सीमा के सहारे न तो प्लेट का क्षय होता है और न ही नयी क्रस्ट का निर्माण।
iii) रचनात्मक प्लेट सीमा तथा किनारा (constructive plate margins) – रचनात्मक किनारों के सहारे नये पदार्थों का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया मध्य महासागरीय कटक के सहारे सम्पन्न होती है जहाँ दो प्लेट विपरीत दिशाओं में अपसरित होते हैं। इसे अपसारी (divergent) या सम्बर्धी accreting) प्लेट सीमा भी कहते हैं।
स्थलमण्डलीय प्लेट विभिन्न प्रारूपों में गतिशील तथा प्रवाहित होते हैं। स्मरणीय है कि ये प्लेट अपने ऊपर स्थित महाद्वीप तथा महासागरीय भागों को अपने प्रवाह के साथ ही स्थानान्तरित करते हैं। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर हैरी हेस (Hess) ने महाद्वीपों के प्रवाह के पक्ष में प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन 1960 में किया। हेस के अनुसार महाद्वीप तथा महासागर विभिन्न प्लेट के ऊपर टिके हैं। जब ये प्लेट प्रवाहित होते हैं तो उनके साथ महाद्वीप तथा महासागरीय तली भी विस्थापित हो जाती है। कार्बानिफरस युग से पौंजिया के विभिन्न प्लेटों के स्थानान्तरण तथा प्रवाह के कारण ही वर्तमान महाद्वीपों तथा महासागरों का रूप प्राप्त हुआ है। इनके प्रारूपों में भविष्य में भी परिवर्तन हो सकता है क्योंकि इन प्लेटों में प्रवाह अब भी जारी है।