भारत की प्रमुख नदियाँ –
भारत के कुल अपवाह क्षेत्र के लगभग 77% भाग में गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा आदि नदियाँ शामिल हैं, जो बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में जल विसर्जित करती हैं, जबकि 23% क्षेत्र जिसमें सिन्धु, नर्मदा, तापी, माही व पेरियार नदियाँ हैं, अपना जल अरब सागर में गिराती हैं। भारत की अधिकांश मुख्य नदियों का उद्गम स्रोत हिमालय है और वे अपना जल बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में विसर्जित करती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की बड़ी नदियों का उद्गम स्थल पश्चिमी घाट है और ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जन करती हैं, परन्तु कुछ नदियाँ पश्चिम की ओर निकलकर अरब सागर में मिलती हैं। उदाहरणस्वरूप माण्डवी और जुआरी, गोवा में बहने वाली दो नदियाँ हैं, जो पश्चिम की ओर बहती हैं। इसी प्रकार का अपवाद नर्मदा और ताप्ती नदी भी है, जो अपना जल अरब सागर में विसर्जित करती है
यद्यपि चम्बल बेतवा, सोन आदि नदियों का समुहीकरण उपरोक्त तरीकों से कठिन हो जाता है, क्योंकि उत्पत्ति और आयु में ये हिमालय से निकलने वाली नदियों से पुरानी है साथ ही इसकी दिशा भी उत्तर की ओर है।
जल संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर भारतीय नदियों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
(1) मुख्य नदियां (Major Rivers)-
जिनका प्रवाह क्षेत्र प्रत्येक का 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का है। इस प्रकार के 14 नदी बेसिन हैं। इनके अन्तर्गत सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, साबरमती, माही, नर्मदा, तापी, सुवर्णरखा, ब्राह्मणी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार और कावेरी नदियों के बेसिन आते हैं। इनमें प्रति 100 वर्ग किलोमीटर पीछे 630 लाख घन मीटर जल की प्राप्ति होती है।
(2) मध्यम नदियां (Medium Rivers)-
जिनका प्रत्येक का प्रवाह क्षेत्र 2,000 से 20,000 वर्ग किलोमीटर तक का है। ऐसे 44 नदी बेसिन हैं। इसके अन्तर्गत नदियों को तीन उप-विभागों में विभाजित किया गया हैः (a) वे नदियां जो पश्चिम की ओर बहती हैं, यथा शतरूंजी, भादरा, बुडाबलांग, वैतरणी, पूर्णा, अम्बिका, उल्लहास, सावित्री, मांडवी, गंगावती, कालीनदी, शरबती, नेत्रावती, गलियार, भारतफुजा, पेरियर और पाम्बा। (b) वे नदियां जो पूर्व की ओर बहती हैं, यथा रसीकुलिया, वामसधारा, नगावली, सारदा, यलेरू, मूसी, पलेरू, मुनेरू, कुंलेरू, करतालियार, पलार, गिंगी, पनियार वेलार, वैगई, कुडार, वरशाली, वैयार और ताम्रपर्णी। (c) वे नदियां जो अन्य देशों में बहती हैं, कर्णफूली, कलदान, इम्फाल और तीक्सू नानीतालुक। इनमें प्रति 100 वर्ग किलोमीटर पीछे 460 लाख घन मीटर जल प्राप्त होता है।
(3) लघु नदियां (Minor Rivers) –
जिनका प्रत्येक का प्रवाह क्षेत्र 2,000 वर्ग किलोमीटर से कम का है। ऐसी नदी बेसिनों की संख्या अधिक है। इनमें प्रत्येक 100 वर्ग किलोमीटर पीछे 250 लाख घन मीटर जल प्राप्त होता है। धरातल पर बहने वाले कुल जल (run-off) राशि (जो 1,64,50,000 लाख घन मीटर है) का 85 प्रतिशत बड़ी नदियों द्वारा, 2 प्रतिशत मध्यम और 8 प्रतिशत लघु नदियों द्वारा प्राप्त होता है। एक अनुमान के अनुसार भारत की सभी नदियों का संग्रहण क्षेत्र 30.2 लाख वर्ग किलोमीटर है। देश की नदियों में बहने वाले जल की सम्पूर्ण मात्रा का 90 प्रतिशत बड़ी और मध्यम नदियों के प्रवाह क्षेत्र में सन्निहित है।
जल-विभाजक (Water Divide)
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों का अपवाह क्षेत्र अरब सागर में गिरने वाली नदियों से अधिक विस्तृत है। मोटे तौर पर भारत के अपवाह का 3/4 भाग बंगाल की खाड़ी के अन्तर्गत आता है। अरावली पर्वत इन दोनों अपवाह प्रदेशों के बीच उत्तम जल-विभाजक का काम करते हैं जो दिल्ली से लगाकर शिमला तक फैले हैं। इन दोनों अपवाह प्रदेशों की जल-विभाजक रेखा हिमालय के उत्तर में स्थित कैलस पर्वत के निकट मानसरोवर झील से आरम्भ होकर कामेत पर्वत होती हुई शिमला के पूर्वी भाग को छूती हुई अरावली पर्वतों के बीचों-बीच उदयपुर तक आती है। इसके दक्षिण में इन्दौर के निकट से यह जल-विभाजक रेखा नर्मदा की घाटी के उत्तर-पूर्व में मुड़कर मैकाल और महादेव की पहाड़ियों के दक्षिणी भाग से मुड़कर पुनः पश्चिम में अजन्ता की पहाड़ियों से होती हुई पश्चिमी घाट के सहारे-सहारे पश्चिमी तट के समानान्तर कन्याकुमारी तक विस्तृत है।
भारत के अपवाह तंत्र [The Drainage Systems of India] –
किसी भी देश का अपवाह तंत्र वहाँ के उच्चावच तथा भूमि के ढाल पर निर्भर करता है। भारत एक विशाल देश है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार है जिनके बीच उत्तरी भारत का विशाल मैदान है। अतः भारत के अपवाह तंत्र को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जाता है –
हिमालय पर्वतीय अपवाह तंत्र का विकास –
हिमालय पर्वतीय नदियों के विकास के बारे में भूवैज्ञानिक मानते हैं कि मायोसीन कल्प में (लगभग 2.4 करोड़ से 50 लाख वर्ष पहले) एक विशाल नदी, जिसे शिवालिक या इंडो-ब्रह्म कहा गया है. हिमालय के संपूर्ण अनुदैर्ध्य विस्तार के साथ असम से पंजाब तक बहती थी और अंत में निचले पंजाब के पास सिंध की खाड़ी में अपना पानी विसर्जिन करती थी। शिवालिक पहाड़ियों की असाधारण निरंतरता, इनका सरोवरी उद्गम और इनका जलोढ़ निक्षेप से बना होना जिसमें रेत, मृत्तिका, चिकनी मिट्टी, गोलाश्म व कोंगलोमेरेट शामिल है. इस धारणा की पुष्टि करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि कालांतर में इंडो-ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में बँट गई (1) पश्चिम में सिंध और इसकी पाँच सहायक नदियाँ, (2) मध्य में गंगा और हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ और (3) पूर्व में बह्मपुत्र का भाग व हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ। विशाल नदी का इस तरह विभाजन संभवतः हिमालय के पश्चिमी भाग में व पोटवार पठार (दिल्ली रिज) के उत्थान के कारण हुआ। यह क्षेत्र सिंधु व गंगा अपवाह तंत्रों के बीच जल विभाजक बन गया। इसी प्रकार मध्य प्लीस्टोसीन काल में राजमहल पहाड़ियों और मेघालय पठार के मध्य स्थित माल्दा गैप का अधोक्षेपण हुआ जिसमें गंगा और बह्मपुत्र नदी तंत्रों का दिपरिवर्तन हुआ और वे बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित हुई।
(i) सिन्धु अपवाह,
(ii) गंगा अपवाह,
(iii) ब्रह्मपुत्र अपवाह
(i) सिन्धु अपवाह (The Indus Drainage System) : भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियाँ विस्तृत क्षेत्र को अपवाहित करती हैं। अकेले सिन्धु नदी ही हिमालयी प्रदेश में 2,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है। सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम जैसी प्रसिद्ध नदियाँ इसकी सहायक नदियाँ हैं। इनमें से झेलम पीर पंजाल से निकलती है। अन्य सभी नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती हैं। विभाजन के बाद इस अपवाह क्षेत्र का बहुत सा भाग पाकिस्तान में चला गया।
सिन्धु नदी (Indus River) : इसका स्त्रोत तिब्बत में 5,180 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर झील के निकट है। इसे तिब्बत में सिंगी खम्बान अथवा शेर मुख कहते है l यह नदी 4206 मीटर की ऊँचाई से जम्मू तथा कश्मीर के भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है। ऊपरी भागों में विशाल गॉर्ज बनाती हुई यह नदी कैलाश पर्वत को कई बार पार करती है। लद्दाख तथा गिलगित से बहती हुई एटक (Attock) के निकट यह पर्वतीय प्रदेश से बाहर निकलती है। यहाँ पर अफगानिस्तान की काबुल नदी इसके साथ मिलती है। इसकी प्रसिद्ध सहायक नदियाँ सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम मिलकर पंचनद बनाती हैं। Read more…..
गंगा नदी तंत्र (Ganges River System)
गंगा नदी (Ganga) – यह हिन्दुओं की सबसे प्रमुख पवित्र नदी है। केन्द्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय नदी घोषित किया है। गंगा नदी कई सहायक नदियों से मिलकर बनी है। इसकी मुख्य सहायक नदियां, जो इसमें उत्तर की ओर से आकर मिलती हैं, यमुना, रामगंगा, करनाली, राप्ती (घाघरा), गंडक, कोसी, काली, आदि हैं तथा दक्षिण के पठार से मिलने वाली नदियों में चम्बल, सिन्धु, बेतवा, केन, दक्षिणी टोंस, सोन, आदि हैं।
गंगा नदी उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के में निकट गंगोत्री हिमनद से 6,600 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। यहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है। यह मध्य व लघु हिमालय श्रेणियों को काट कर ये तंग महाखड्डों से होकर गुजरती है। देवप्रयाग में भागीरथी, में अलकनंदा से मिलती है और इसके बाद गंगा कहलाती से है। अलकनंदा नदी का स्रोत बद्रीनाथ के ऊपर सतोपथ हिमनद है। ये अलकनंदा, धौली और विष्णु गंगा धाराओं से मिलकर बनती है, जो जोशीमठ या विष्णुप्रयाग में मिलती है।
अलकनंदा की अन्य सहायक नदी पिंडार है. जो इससे कर्ण प्रयाग में मिलती है, जबकि मंदाकिनी या काली गंगा इससे रूद्रप्रयाग में मिलती है। गंगा नदी के हरिद्वार में मैदान में प्रवेश करती है। यहाँ से यह पहले दक्षिण की ओर. फिर दक्षिण-पूर्व की ओर और फिर पूर्व की ओर बहती है। अंत में, यह दक्षिणमुखी होकर दो जलवितरिकाओं (धाराओं) भागीरथी और पदमा में विभाजित हो जाती है। इस गंगा नदी की लंबाई 2,525 किलोमीटर है।
यह उत्तराखण्ड में 110 किलोमीटर, उत्तरप्रदेश में 1.450 किलोमीटर, बिहार में 445 किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर मार्ग तय करती है। गंगा द्रोणी केवल भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। यह भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है, जिससे उत्तर में हिमालय से निकलने वाली बारहमासी व अनित्यवाही नदियाँ और दक्षिण में प्रायद्वीप से निकलने वाली अनित्यवाही नदियाँ शामिल हैं। सोन इसके दाहिने किनारे पर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदी है।
बाँये तट पर मिलने वाली महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती. घाघरा, गंडक, कोसी व महानंदा हैं। सागर द्वीप के निकट यह नदी अंततः बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।भूगर्भशास्त्रियों का विश्वास है कि गंगा का अपवाह पूर्वगामी है। यह हिमालय की श्रेणियों से भी पुराना है।
गंगा का डेल्टा हुगली और मेघना नदियों के बीच का है। यह विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है जिसमें अनेक धाराओं और छोटे-छोटे द्वीपों का जाल सा बिछा है। इसका क्षेत्रफल 51,300 वर्ग किलोमीटर है। इस डेल्टा के अन्तर्गत मुर्शिदाबाद, नादिया, जैसोर और 24 परगना के जिले हैं। डेल्टा का समुद्री भाग घने जंगलों से ढका है जिनमें चीते, आदि हिंसक पशु रहते हैं।
सुन्दरी पेड़ों की अधिकता से यह भाग सुन्दर वन भी कहलाता है। बंगाल का सबसे बड़ा जलमार्ग हुगली नदी है। इसे विश्व की सबसे अधिक विश्वासघाती नदी (Tracherous River) भी कहते हैं। यह विश्व की सबसे अधिक व्यस्त नदियों में से है। इसी तट पर कोलकाता बन्दरगाह है जिसे पूर्व का लन्दन कहा जाता है। Read more ….
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट चेमायुंगडुंग (Chemayungdung) हिमनद में है।ब्रह्मपुत्र की कुल लम्बाई 2880 किमी हैl जब की भारत में कुल लम्बाई 885 किमी हैl यहाँ से यह पूर्व दिशा में अनुदैर्ध्य रूप में बहती हुई दक्षिणी तिब्बत के शुष्क व समतल मैदान में लगभग 1,200 किलोमीटर की दूरी तय करती है. जहाँ ( तिब्बत में ) इसे सांग्पो (Tsangpo) के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘शोधक’। तिब्बत के रागोंसांग्पो इसके दाहिने तट पर एक प्रमुख सहायक नदी है। मध्य हिमालय में नमचा बरवा (7.755 मीटर) के निकट एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करती हुई यह एक प्रक्षुब्ध व तेज बहाव वाली नदी के रूप में बाहर निकलती है। हिमालय के गिरिपद में यह सिशंग या दिशंग के नाम से निकलती है। अरुणाचल प्रदेश में सादिया कस्बे के पश्चिम में यह नदी भारत में प्रवेश करती है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहते हुए इसके बाएँ तट पर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग या सिकांग और लोहित मिलती हैं और इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।
असम घाटी में अपनी 750 किलोमीटर की यात्रा में ब्रह्मपुत्र में असंख्य सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं। इसके बाएँ तट की प्रमुख सहायक नदियाँ बूढ़ी दिहिंग और धनसरी (दक्षिण) हैं, जबकि दाएँ तट पर मिलने वाली महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में सुबनसिरी. कामेग, मानस व संकोश हैं। सुबनसिरी जिसका उद्गम तिब्बत में है, एक पूर्ववर्ती नदी है। बह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है और फिर दक्षिण दिशा में बहती है। बांग्लादेश में यह जमुना कहलाती है और तिस्ता नदी इसके दाहिने किनारे पर मिलती है। अंत में, यह नदी पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। वह्मपुत्र नदी बाढ़. मार्ग परिवर्तन एवं तटीय अपरदन के लिए जानी जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसकी अधिकतर सहायक नदियाँ बड़ी हैं और इनके जलग्रहण क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण इनमें अत्यधिक अवसाद बहकर आ जाता है।
असम के अधिकांश भाग में ब्रह्मपुत्र एक गुंफित (Broaded) नदी है। यह अपने साथ बहुत सी रेत मिट्टी लाती है और नदी विसर्प भी बहुत हैं। डिब्रूगढ़ के पास यह नदी लगभग 16 किमी चौड़ी हो जाती है और इसमें बहुत से द्वीप हैं। सबसे विख्यात माजुली (Majuli) द्वीप है। यह लगभग 90 किमी लम्बा है और इसकी अधिकतम चौड़ाई 20 किमी है। इसका कुल क्षेत्रफल । 1250 वर्ग किमी है। माजुली विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।
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